Monday, 29 March 2021

ज्ञान🌅

इंसान जानने लगा है

एक अहंकार ज्ञान से

कितना बड़ा हूं   "मैं"

मस्तिष्क मे भर कर


यत्र  तत्र हर  ओर

एक प्रतिस्पर्धा लिए

यह करेंगे वह करेंगे

क्या नहीं कर सकते


कितना बड़ा है इंसान

कितना ज्ञानी   इंसान

आपने कुछ किया न

किए-बने बिन  तो न


सब कर रहे बहुत 

सब जान रहे बहुत

इतना तो बता "मनु"

"खुद" को जाना कया

🌷

Thursday, 25 March 2021

अनमोल रिश्ते 🌅

किसी की अहमियत 

वर्तमान मे नहीं होती

आदत सी हो जाती

अमूल्य अपनों   की


अहम कितने लोग के

पर्दा डाल दिया करते

खुदा से नवाजे  गए

इन अमूल्य क्षणों को


जीवन की भागदौड़ 

कभी नहीं थमने  को

ढूंढ रही अपनों की

चाहे न नजरंदाज कर


देख सके तो देख ले

ह्रदय के नेत्रों से

खुदा से नवाजे गए

कोहीनूरी  रिश्तों को🌷

Wednesday, 17 March 2021

काम🌅

 


हम प्रायः  बातें करते

यह करेंगे व बनायेंगे

इतनी सामग्री लगेगी

वह श्रम समय लगेगा


बिन किसी सामग्री के

वह  अद्भुत कारीगर

बिन कुछ सामग्री के

प्रचंड ब्रह्मांड रचाया


अकेला बिन नक्शे

भिन्न-भिन्न प्रकार 

रुप रंग और आकार

रचनाकार हैं अकेला


फूंक प्राण जीव रचाए

फल फूल बहते झरने 

विशाल  समुद्र पहाड़

सूर्य किरण से प्रकाश


फिर भी मनुष्य  मन

कहे यह वह   किया 

उन्माद की सीमा पर

कहता खुदा कहां है 🌷

Saturday, 13 March 2021

प्रथम दृष्टय प्रेम 🌅

 भूत मे प्रत्यक्ष 

वर्तमान की  स्मृतियां

मे  क्यूं कर इंसान

वर्तमान टटोल रहा


गुजर गया जो

प्रभाव छोड़ कर

ह्रदय मे भाव

स्मृति मे यादें


नेत्र से झरता

कभी वह अविरल

भाव जब  वेग

अश्रु बन उभरता


 कोई आंख क्यूं कर

ह्रदय मोह लेती

अनोखी बन माया

अमिट स्मृति पटल 🌷

Friday, 19 February 2021

प्रेम 🌅

 जीवन का माधुर्य 

सिमटा उन क्षणों 

जब नेत्र  मिलकर

 रूक से गऎ 


अद्भुत अहसास 

ह्रदय मे संजोए

इक मिठास 

 मिटे नही मिटे


क्षण अनमोल

खोजें  न मिले

प्रेम से  उपजे

मोल नहीं मिले


जीवन की पूंजी

है बस   उनमें

मुहब्बत है उधव 

बंदगी   वह  नहीं 🌷

Sunday, 31 January 2021

नैन🌅

 विश्व मे कितनी भीड़

अथाह सागर है लोग

मिलते जुलते रहते हैं

अनेकों से हर  रोज


दो  नयन वो अनजान

भीतर जैसे कोई तीर

अंतर्मन को झकझोर

अंकुरित एक नवदीप


क्यों कर बनते रिश्ते

बिन कारण व उद्देश्य

अद्भुत उमंग कर वो

भर जीवन मे  हिलोरें


क्यों कर खोजें  उन्हें

नेत्र भरे खालीपन को

अपने लगते क्यूं कोई

स्वयं देख नेत्र अन्यत्र🌷

Thursday, 14 January 2021

नारी 🌅

 


प्यार की मूर्ति प्रेमिका

 ममता की छांव   मां

दो रूप  मे संवारती

ईंटों  कोठरी के  घर


कुछ देर न हो जो घर

सब ठहर  जाए सब

वरना तो यूं है लगता

क्या करतीं रहती है


आवाज से गूंजती हैं

बहुत बोलती है यह

कदाचित जो न हो

तो सन्नाटा पसरा रहे


पलभर मे अश्रु धारा

समेटे हुए अपार भाव

नर्म है ह्रदय से  यह

चोट सह न कर  पाए


इतनी अजीज दुनिया

बनाकर फिर खुदा ने

प्रेम ममता व धीरज्

भरकर ही स्त्री बनाई


इनहे  अगर समझना

शब्दों पर ना जाना

पढ़ कर इनकी आंखे

इनके भाव   पहुंचना


कुछ भी सह लेती

अपार कष्ट यह

पर चोट विश्वास की

उन्हें  है   न गुजारा 


अनमोल है यह रिश्ते

मोम से है सब नाजुक

कठोर है पुरुष दुनिया

इनको संभल निभाना🌷