प्यार की मूर्ति प्रेमिका
ममता की छांव मां
दो रूप मे संवारती
ईंटों कोठरी के घर
कुछ देर न हो जो घर
सब ठहर जाए सब
वरना तो यूं है लगता
क्या करतीं रहती है
आवाज से गूंजती हैं
बहुत बोलती है यह
कदाचित जो न हो
तो सन्नाटा पसरा रहे
पलभर मे अश्रु धारा
समेटे हुए अपार भाव
नर्म है ह्रदय से यह
चोट सह न कर पाए
इतनी अजीज दुनिया
बनाकर फिर खुदा ने
प्रेम ममता व धीरज्
भरकर ही स्त्री बनाई
इनहे अगर समझना
शब्दों पर ना जाना
पढ़ कर इनकी आंखे
इनके भाव पहुंचना
कुछ भी सह लेती
अपार कष्ट यह
पर चोट विश्वास की
उन्हें है न गुजारा
अनमोल है यह रिश्ते
मोम से है सब नाजुक
कठोर है पुरुष दुनिया
इनको संभल निभाना🌷
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