विश्व मे कितनी भीड़
अथाह सागर है लोग
मिलते जुलते रहते हैं
अनेकों से हर रोज
दो नयन वो अनजान
भीतर जैसे कोई तीर
अंतर्मन को झकझोर
अंकुरित एक नवदीप
क्यों कर बनते रिश्ते
बिन कारण व उद्देश्य
अद्भुत उमंग कर वो
भर जीवन मे हिलोरें
क्यों कर खोजें उन्हें
नेत्र भरे खालीपन को
अपने लगते क्यूं कोई
स्वयं देख नेत्र अन्यत्र🌷
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