Sunday 20 December 2020

"मैं" 🌅

इक आरंभिक सुरूर " मैं"

इक धुंधली सी पराकाष्ठा

अजनबी से माहौल  उभार

इक रुदन से उत्पन्न करता


मां के जिस्म से विघटित

इक अलग हुआ एहसास

इक घट में उत्पन्न  प्रवास

है अद्भुत यह बसेरा  "मैं"


नाजों से संवारा इसे 

सबसे पहले  रखा इसे

सबसे ज्यादा व पहले "मै

प्रिय में प्रिय बनीं  यह "मैं"


"मैं" को टटोलो तो दिखे न

अजब सी पहेली है  यह "मैं"

अजीज सबसे कृष्ण की "मैं"

सबको इक धागे पिरोए "मैं"🌷













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