Thursday 1 March 2012

आवाज दो तुम खुद को आज

                                                                         आवाज दो तुम  खुद को आज
         आवाज दो तुम खुद को आज ।
     
          सोई हुई  है सोच क्यों ..
         दबे -दबे क्यों है आरमान
         इनको कब तुम जागाओगे
        तुम बहुत कुछ  कर ले जाओगे  

         आवाज दो तुम  खुद को आज
         आवाज दो तुम खुद को आज ।
      
         सपनो की दुनिया सपनो तक
         बस यूँ  ही न सीमित रहे
         खाली पूरी जमीन पर बस लिख दो
          तुम अपना ही नाम

         आवाज दो तुम  खुद को आज
         आवाज दो तुम खुद को आज ।

         क्यूँ  किये है बंद इसके किवाड़
         आओ खोल दो इन्हें तुम आज
         किस बात का है इंतजार
   
         आवाज दो तुम  खुद को आज
         आवाज दो तुम खुद को आज ।

         बस नाम का मत काम करो
         काम से ही नाम करो
         फिर देखो क्या होता है आज

         आवाज दो तुम  खुद को आज
         आवाज दो तुम खुद को आज ।

            बस एक कदम की  दूरी पर  
            है खड़ी तुम्हारी  मंजिले
            बढ़ा दो  ना  तुम ये  कदम
            क्यू थमे -थमे है ये पड़े

          आवाज दो तुम  खुद को आज
          आवाज दो तुम खुद को आज ।

             पूरी श्रृंखला तुम्हारे बिन
            सूनी-सूनी है पड़ी हुई
            एक उंगली बढ़ा कर तुम
            करते नही हो क्यूँ आगाज

           आवाज दो तुम  खुद को आज
           आवाज दो तुम खुद को आज ।

           सीमित सजा है ये गगन
           सीमित  पड़ी है ये धरा
           सिमटी हुई  है  साडी दिशा
           तुमसे ही है इनका विस्तार

           आवाज दो तुम  खुद को आज
           आवाज दो तुम खुद को आज ।

             डाल  दो हौसले का रंग
             उड़ेल दो अपना प्रयास
             हर तरफ जगमगायेगा बस
             बस तुम्हारा ही तुम्हारा प्रयास

           आवाज दो तुम  खुद को आज
           आवाज दो तुम खुद को आज  

        ( आज कुछ ऐसा ही ख्याल आया की हम अपनी ही आवाज को क्यों नही सुनने की कोशिश     
        करते  जबकि हम चाहते है की दुनिया हमारी  आवाज को पूरी तरह सुने ...सच मे कितना  
         अजीब सोच लेते   है कभी -कभी हम ।।_)

Monday 13 February 2012

१०\१\२०१२---------------दिवा बेन (गाँधीआश्रम स्कूल शाला -१)

आज 
ASP का पहला सप्ताह और पहली VISIT  थी |जैसा की मैंने हर सप्ताह मे २ visit  बनायीं थी ६ सप्ताह के लिए मगर जब आज दिवा बेन के साथ शेयर किया तो उन्होंने कहा -
(क)--एक हप्ते मे २ बार तो संभव नही हो पायेगा क्योकि जब आप आते हो तो मेरी पूरी कोशिस होती है की  सारा टाइम  आपको दे पाऊ जिसकी वजह से कुछ काम  रुक जाते है |और बाकि दिन तो मे जाती ही हूँ |
(ख)--आज का जो मेरा पहला
objective  था ( क्लेअर कांसेप्ट ऑफ़ गोइंग  क्लास ) इस पर जिन बिन्दुओ पे बात हुयी वो  इस प्रकार थे ----

(क)-----मैंने कहा की जैसा आपने वर्कशॉप मे कहा था की आप गणित इसलिए पढाना चाहती है क्योकि --बच्चे कमजोर होते है ,और समझ नही पाते? तो आपको क्या लगता है की  शिक्षक पढ़ा नही पाते या फिर   बच्चे ही पढ़ नही पाते(असमर्थ )है |

उन्होंने कहा -आधे बच्चे तो कमजोर होते है क्योकि वो ध्यान ही नही देते ,उनकी रूचि ही नही होती इसलिए वो सिख  नही पाते और कुछ शिक्षक तो काफी अच्छा पढ़ते है जिससे की बच्चे जल्दी सिख पाते है |

(ख )----मैंने कहा ठीक है मगर जिन बच्चो की रूचि ही नही है उन्हें कैसे  पढाया जा सकता है जिससे  उनकी रूचि  भी जागे|और जो बच्चे जल्दी शिख पाते है उसके पीछे क्या वजह हो सकती है |क्या इसपे हम आप  शिक्षक मिलके कुछ  शेयर कर सकते है|
उन्होंने कहा की हा कर सकते है क्योकि अगर वे बच्चे पढना नि छह रहे है तो खेल के द्वारा भी कुछ किया जा सकता है | मैंने कहा   की  क्या सिर्फ अंको से ही गणित शिखाया जा सकता है क्योकि खेल तो  लगभग हर बच्चे को पसंद होता है |

(ग )---उन्होंने कहा कुछ बच्चे तो इसलिए नही सिख पाते क्योकि उनके साथ  बहुत साडी परेसनिया होती है और कुछ बच्चे तो पांचवी के बाद भी  नही सिख  पाते|

मैंने पूछा की फिर वो बच्चे आगे की क्लास मे कैसे चले जाते है  उनका उत्तर  था की---
(क)--४ परीक्षाये होती है जो की २५-२५ नंबर की होती है | उसमे जैसे  मौखिक परीक्षा होती है तो बच्चे को जब मुह से बोलकर प्रसन पूछो तो उसे वार्ता की खबर  पड़ती है और वो समझ के जवाब दे पता है जबकि लिखित मे वो कम या तो समझ ही नही पाता|

मैंने कहा की जो बच्चे रूचि नही लेते या नही समझते तो क्या उनके लिए "वार्ता " वाली पढाई  का अवसर नही दिया जा सकता |उन्होंने कहा की हा सायद इससे कुछ हो पायेगा
(ख )---गणित की क्लास  मे वो शिक्षक के साथ ही जाएँगी इससे -------
       जब मे  क्लास लुंगी तो  शिक्षक जिन बच्चो को नही आता उनके साथ ज्यादा समय दे पाएंगी        और यह भी समझ पाएंगी की मे कैसे पढ़ा रही हु |

(ग )--मैंने कहा की हा आप दोनों एक -दुसरे के साथ शेयर भी कर सकती है और प्लानिंग भी साथ -साथ कर सकती है |
(घ )--टीचर सप्पोर्ट की बात पे उन्होंने कहा की----------

(क )-----मे टी अल ऍम ,ग्रुप-विभाजन के माध्यम से ,उनके कक्षा की समस्याओ के बारे मे बात करके उन्हें सप्पोर्ट  करती हु मगर कुछ के साथ करना भी चाहती हु तो  नही कर पति क्योकि वो मुझे कही से भी सप्पोर्ट नही करती |

मैंने पूछा -मतलब ?
जब टीचर मन से करना ही नही चाहती तो मे कैसे करू ,मे तो किसी भी टीचर के साथ एक घंटा  ही रह सकती हु मगर टीचर का मानना  है की
 (क ) --- उससे कमजोर बच्चे ही मिले है |अच्छे बच्चे उनके पास नही है |

मैंने कहा की आप एक बार अकेले मे उनसे बात करके देखिये की उन्हें क्या परेशानी है ?क्या वजह है
उन्होंने फिर कहा की ---कुछ टीचर तो बहुत अच्छा करती है ,बच्चे हमेशा शिखने को तैयार रहते है

(ख )---क्लास मे रेगुलर जाने की बात पे उन्होंने कहा की --हा अभी तो मे रोज ही जाती हु |
आज प्लानिंग शेयर करते वक़्त मुझे लगा की उनकी काफी रूचि थी \
------------एक बात मेरे मन मे थी मगर मे उनसे पूछने के  क्लेअर नही थी की ---
आप क्लास तीसरी के उस शिक्षिका के साथ ही क्लास लीजिये न जिन्हें लगता है की उनके पास कमजोर बच्चे है \
आज क्लास मे जाने को भी था मगर नही हो पाया क्योकि प्रक्टिकल लर्निंग  के  लिए बच्चो को स्कूल के पीछे घुमाने ले गए थे |

(ग ) ---आज  उन्होंने मुझसे थोडा और डिटेल मे खुल के बताया और आज कम्मुनिटी मे भी गयी और पहला दिन सिर्फ  थोड़ी बहुत लोगो से बात -चित हुई |