मिट्टी उभरे तन
ओढ़े हुए मन
संसार विचरण करते
लपेटे विचार दर्पण
इतने व्यस्त हम
लगता यूं जैसे
अनंत खेल यह
सब कुछ सत्य
बोले कृष्ण गीता
मैं ही मिट्टी से
आत्म रूप धारण
सर्वत्र हूं विचरता
स्पष्ट अध्याय १५
कितने ही तत्वदर्शी
बिन पवित्रता कोई
दर्श मुझे न पाए 🌷
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