कुछ कच्चे -पक्के ख्याल ....आपके साथ
रात के आशियाने में एक चमक सी देखी
एक टूटे तारे की झलक सी देखी
मकसद ये नही था की कुछ मांगना चाहती थी
मैं उससे जो खुद किसी और के लिए टूटा था
मैं तो तलाश रही थी खुद की झलक
जिसमे सिर्फ मैं और मेरी झलक का जूनून था
कुछ जुगनू आये और आते रहे
कुछ का नामो - निशान
अभी भी उस गुम -सुम पेड़ पे अटका हैं
जहा कभी उनका गुलज़ार होता था
एतबार होत़ा था
एक अधूरी सी कहानी हिसाब
मांगती हैं उन सारे बिखरे पलों का
जब हम दोनों साथ बैठे थे
जहा वो थी मेरी सहेली मगर मैं उसकी कोई नही
खुली किताब का हर पन्ना ,हर पल
एक आहट के साथ आकर सिकुड़ जाता हैं
जहा मैं अपनी तन्हाईयों मैं खो जाती हूं
है जरा चंचल सा मन मगर ,कठोर नही
बीएस हर आश को पूरा करना करना
और उसमे जी लेना चाहती हूँ
एक हलकी सी छुवन ,उस नर्म पौधे की
जो खुद ही सिसक रहा हैं
पाने को बेताब नही मगर
उससे रु -बरु होना चाहती हूँ
शायद ,
निर्भय मन की ये एक और ख्वाहिश हैं
एक पैगाम हैं ये आखिरी तो नही
मगर हा आखिरी से कम भी नही,,,,,
यशस्वी दिवेदी
रात के आशियाने में एक चमक सी देखी
एक टूटे तारे की झलक सी देखी
मकसद ये नही था की कुछ मांगना चाहती थी
मैं उससे जो खुद किसी और के लिए टूटा था
मैं तो तलाश रही थी खुद की झलक
जिसमे सिर्फ मैं और मेरी झलक का जूनून था
कुछ जुगनू आये और आते रहे
कुछ का नामो - निशान
अभी भी उस गुम -सुम पेड़ पे अटका हैं
जहा कभी उनका गुलज़ार होता था
एतबार होत़ा था
एक अधूरी सी कहानी हिसाब
मांगती हैं उन सारे बिखरे पलों का
जब हम दोनों साथ बैठे थे
जहा वो थी मेरी सहेली मगर मैं उसकी कोई नही
खुली किताब का हर पन्ना ,हर पल
एक आहट के साथ आकर सिकुड़ जाता हैं
जहा मैं अपनी तन्हाईयों मैं खो जाती हूं
है जरा चंचल सा मन मगर ,कठोर नही
बीएस हर आश को पूरा करना करना
और उसमे जी लेना चाहती हूँ
एक हलकी सी छुवन ,उस नर्म पौधे की
जो खुद ही सिसक रहा हैं
पाने को बेताब नही मगर
उससे रु -बरु होना चाहती हूँ
शायद ,
निर्भय मन की ये एक और ख्वाहिश हैं
एक पैगाम हैं ये आखिरी तो नही
मगर हा आखिरी से कम भी नही,,,,,
यशस्वी दिवेदी
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