आवाज दो तुम खुद को आज ।
सोई हुई है सोच क्यों ..
दबे -दबे क्यों है आरमान
इनको कब तुम जागाओगेतुम बहुत कुछ कर ले जाओगे
आवाज दो तुम खुद को आज
आवाज दो तुम खुद को आज ।
सपनो की दुनिया सपनो तक
बस यूँ ही न सीमित रहे
खाली पूरी जमीन पर बस लिख दो
तुम अपना ही नाम
आवाज दो तुम खुद को आज
आवाज दो तुम खुद को आज ।
क्यूँ किये है बंद इसके किवाड़
आओ खोल दो इन्हें तुम आज
किस बात का है इंतजार
आवाज दो तुम खुद को आज
आवाज दो तुम खुद को आज ।
बस नाम का मत काम करो
काम से ही नाम करो
फिर देखो क्या होता है आज
आवाज दो तुम खुद को आज
आवाज दो तुम खुद को आज ।
बस एक कदम की दूरी पर
है खड़ी तुम्हारी मंजिले
बढ़ा दो ना तुम ये कदम
क्यू थमे -थमे है ये पड़े
आवाज दो तुम खुद को आज
आवाज दो तुम खुद को आज ।
पूरी श्रृंखला तुम्हारे बिन
सूनी-सूनी है पड़ी हुई
एक उंगली बढ़ा कर तुम
करते नही हो क्यूँ आगाज
आवाज दो तुम खुद को आज
आवाज दो तुम खुद को आज ।
सीमित सजा है ये गगन
सीमित पड़ी है ये धरा
सिमटी हुई है साडी दिशा
तुमसे ही है इनका विस्तार
आवाज दो तुम खुद को आज
आवाज दो तुम खुद को आज ।
डाल दो हौसले का रंग
उड़ेल दो अपना प्रयास
हर तरफ जगमगायेगा बस
बस तुम्हारा ही तुम्हारा प्रयास
आवाज दो तुम खुद को आज
आवाज दो तुम खुद को आज
( आज कुछ ऐसा ही ख्याल आया की हम अपनी ही आवाज को क्यों नही सुनने की कोशिश
करते जबकि हम चाहते है की दुनिया हमारी आवाज को पूरी तरह सुने ...सच मे कितना
अजीब सोच लेते है कभी -कभी हम ।।_)
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