कूड़े में पलता सपना
देश समग्र व उत्तरोत्तर विकास के लिए शिक्षा अकात्य हथियार है |इसके मद्देनजर ही वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने शिक्षा के बजट में २४% की वृद्धि की और ५,२०,५२७ करोण रूपये का प्रावधान उच्च शिक्षा के लिए तय किया |ताकि चीन, रूस,अमेरिका,ब्राजील की भाति भारत भी शिक्षा का स्तर ऊँचा उठा सके और २१वि सदी का सपना पूरा कर सके|मगर अफ़सोस की बात यह है की यह सब मानक जिनके लिए तय किया जाता है वह भविष्य के कर्णधार आज भी उन्ही गंदे ,मलिन बस्तियों ,तालाबों या फिर रेलवे ट्रेक के किनारे पुरे शहर के कूड़े को उठाकर एक वक्त के लिए रोटी-नमक का इंतजाम कर पाते है |जिनके हाथो में कलम होनी चाहिए उनके हाथ शहर की गंदगी से सने पड़े है|ऐसी स्थिति में "सर्व शिक्षा अभियान "मुक्त ,व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की सफलता की माला जपना कहा तक सही है|जबकि यही बच्चे हमारे समाज की "नीव "है |और अगर ये दिन -रत सिर्फ बोरियों में कूड़ा ही बीन रहे होंगे तो उनसे की जाने वाली उम्मीदें भी कूड़े के ढेर में समाधी ले लेंगी|अतः आवश्यकता है की सरकार के अतिरिक्त हम सब भी मिलकर छोटे -छोटे प्रयास करे की इस समस्या का कोई विकल्प निकल सके | यशस्वी द्विवेदी