कठपुतली का खेल, गाँव नगर, राजदरबार या धर्मस्थलो में आमिर गरीब, शिक्षित अक्षित जनता में सामान रूप से प्रदर्शित होते चले आ रहे है. कथापुँतली प्रदर्शन से जहा जनता का मनोरंजन होता है वही इसके कथानक में धार्मिक आडम्बर दहेज़ प्रथा , बेमेल विवाह , अशिक्षा और कुपोषण जैसी सामाजिक समस्यावो का समावेश कर इनका समाधान करने की प्रेरणा भी प्राप्त होती है. कठपुतली प्रदर्शक अपने मनोभाव को इनके अभिनय के द्वारा व्यक कर आत्म प्रदर्शन करते है...
क्या बोलू ...यह महज़ एक सवाल नहीं हैं ...न ही बस एक विचार ...ये दो शब्द मिल के हर बात को नयी पहचान देते हैं , ऐसे दो राहों को सामने लाते हैं जहा खुद के विवेक का प्रयोग करना ही पड़ता हैं ...बात चाहे किसी सवाल के जवाब देने की हो या फिर खुद को बताने की , या ही दूसरों को सामने लाने की, हर बार मन में ,जबान में पहली सोच ,समझ और शब्द की आवाज और आगाज़ बनता हैं यही की ....क्या बोलू ?????
Wednesday, 20 July 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
thats right,the govt. required to incourage this game!!!!!!!!!!!!
ReplyDelete