क्या बोलू ...यह महज़ एक सवाल नहीं हैं ...न ही बस एक विचार ...ये दो शब्द मिल के हर बात को नयी पहचान देते हैं , ऐसे दो राहों को सामने लाते हैं जहा खुद के विवेक का प्रयोग करना ही पड़ता हैं ...बात चाहे किसी सवाल के जवाब देने की हो या फिर खुद को बताने की , या ही दूसरों को सामने लाने की, हर बार मन में ,जबान में पहली सोच ,समझ और शब्द की आवाज और आगाज़ बनता हैं यही की ....क्या बोलू ?????
Wednesday, 27 April 2011
Monday, 18 April 2011
मॉम नहीं माँ..............
मातृभाषा किसी भी देश, राष्ट्र की व वहां के लोगो का वह पहला आभूषण होता है जिसे उनको व्यक्तित्व की पहचान मिलती है! जहा एक ओर हम अपनी मातृभाषा हिंदी को भूलते हुए नजर आ रहे है वही दूसरी तरफ सौतेली आंग्ला भाषा से नजर मिलते नहीं थक रहे है! क्या यही है हमारी संस्कृति की सभ्यता जिसकी सीमा रेखा को पार करने का दुस्साहस हम कर रहे है !
जब तक हम अपनी भाषा का सम्मान करना नहीं सीखेंगे तब तक भारत्वर्सोनती की कलपना से कोसो दूर रहेंगे! हम क्यों नहीं समझ रहे क़ि जब अपनी माँ के स्थान पर दूसरी माँ को हम फूटी आँखों नहीं देख सकते तो राष्ट्र भासा पर विदेशी भाषा क़ि हुकूमत कैसे सह सकते है ! और आज के आधुनिकरण के दौर में हम अपनी भाषा को पीछे छोड़ कर इसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुकुट सजा रहे है वही १४ सितम्बर को हिंदी दिवस पर बुद्धिजीवियों के विचारो, उनकी भाषा के प्रति लगाव उत्थान प्रक्रिया को बताते है!!!!!!! फिर दुसरे दिन ऐसे विकास करने पर भाषा क़ि महत्ता कितने अनुपात में बढ़ी इसका आकलन हम स्वयं कर सकते है !!आज क्रन्तिकारी दौर में भी यदि हम नहीं जागेंगे तो फिर भाषा के सूर्योदय को हमेशा सूर्यास्त के अँधेरे में ही पयेंगे और इसके महत्व को बढ़ाने के लिए किये गए सरे प्रयास निर्थक सिद्ध होंगे .........................
अतः आज युवा वर्ग को सामने आना होगा अन्य भाषाओ के प्रयोग के साथ साथ अपनी मात्र भाषा को सर्वोच्च स्थान देना होगा तभी हम कह सकेंगे क़ि-
"गायन्ति देवा किलगीतकानी ध्यास्तुते स्वर्गापर्द्गार्स्परा भार्ग भूते भूयः भवन्ति पुरुषाशुरात्त्वात"..............
अगर देवतओं के इस अभिव्यक्ति को समझने में भी हम नासमझी दिखा रहे है तब भार्तेन्दु हरिशचंद का सोचना क़ि -- निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति का मूल !! विन निज भाषा के ज्ञान के मिटे न हिय को शूल.............हम कैसे समझेंगे इसलिए मै सोचती हूँ 'क्याबोलू'...............................
Monday, 4 April 2011
dikha diya vishav vijeta hm........
"वह पथ का पथिक कुशलता क्या जिस पथ में बिखरे शूल न हो
नाविक की धर्म परीक्षा क्या जब धाराए ,प्रतिकूल न हो ........."
२८ सालो के बाद जब जीत का सेहरा हर भारतीय के माथे बंधा तो अनायास ही मुह से निकल ही गया ..........
भारत ने दिखा दिया की आंधी हो या तूफान हम हर हाल में सिकंदर है .........जय हो...........
नाविक की धर्म परीक्षा क्या जब धाराए ,प्रतिकूल न हो ........."
२८ सालो के बाद जब जीत का सेहरा हर भारतीय के माथे बंधा तो अनायास ही मुह से निकल ही गया ..........
भारत ने दिखा दिया की आंधी हो या तूफान हम हर हाल में सिकंदर है .........जय हो...........
Subscribe to:
Posts (Atom)